Surah Fatiha Tafseer in Hindi Tafhimul Quran Molana Moududi And Tafseer Ibn kaseer
Surah Fatiha Tafseer in Hindi by Molana Moududi Tafhimul Quran सूरह फातिहा आयत 1 ट्रांसलेशन और तफसीर मौलाना मौदुदी . हाशिया-1 इस्लाम जो अदब और तहज़ीब इन्सान को सिखाता है उसके क़ायदों में से एक क़ायदा ये भी है कि वो अपने हर काम की शुरुआत ख़ुदा के नाम से करे। इस क़ायदे की पाबन्दी अगर सोच-समझकर और सच्चे दिल से की जाए तो इससे लाज़िमी तौर पर तीन फ़ायदे हासिल होंगे- एक ये कि आदमी बहुत से बुरे कामों से बच जाएगा, क्योंकि ख़ुदा का नाम लेने की आदत उसे हर काम शुरू करते वक़्त ये सोचने पर मजबूर कर देगी कि क्या हक़ीक़त में मैं इस काम पर ख़ुदा का नाम लेने का हक़ रखता हूँ? दूसरा ये कि जायज़ और सही और नेक कामों की शुरुआत करते हुए ख़ुदा का नाम लेने से आदमी की ज़ेहनियत (बुद्धि) बिलकुल ठीक रुख़ अपना लेगी और वो हमेशा सबसे सही नुक्ते से अपने काम की शुरुआत करेगा। तीसरा और सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि जब वो ख़ुदा के नाम से अपना काम शुरू करेगा तो उस काम में ख़ुदा उसकी मदद करेगा और उस काम के करने की उसे ताक़त देगा, उसकी कोशिश में बरकत डाली जाएगी और शैतान की रुकावटों और बिगाड़ों से उसे बचाया जाएगा। ख़ुदा का तरीक़ा ये है कि जब बन्दा उसकी तरफ़ तवज्जोह करता है तो वो भी बन्दे की तरफ़ तवज्जोह करता है।
بسم الله الرحمن الرحيم
अल्लाह के नाम से जो बेइंतिहा मेहरबान रहम फ़रमानेवाला है।

- सूरा-1, अल-फ़ातिहा परिचय नाम इसका नाम अल-फ़ातिहा इसके मज़मून [विषय] की मुनासिबत से है। फ़ातिहा उस चीज़ को कहते हैं जिससे किसी मज़मून या किताब या किसी चीज़ की शुरूआत हो। दूसरे लफ़्ज़ों में यूँ समझिये कि ये नाम दीबाचा [भूमिका] और आग़ाज़े-कलाम [प्राक्कथन] का हम-मानी [समानार्थी] है। उतरने का ज़माना ये हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की नुबूवत के बिलकुल शुरूआती ज़माने की सूरा है, बल्कि भरोसेमन्द रिवायतों से मालूम होता है कि सबसे पहली मुकम्मल सूरा जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) पर उतरी वो यही है।
- इससे पहले सिर्फ़ अलग-अलग आयतें उतरी थीं, जो सूरा-96 अलक़, सूरा-73 मुज़्ज़म्मिल और सूरा-74 मुद्दस्सिर वग़ैरा में शामिल हैं।
- मज़मून (विषय-वस्तु) असल में ये सूरा एक दुआ है जो ख़ुदा ने हर उस इन्सान को सिखाई है जो उसकी किताब को पढ़ना शुरू कर रहा हो।
सूरह अल फातिहा को कुरान करीम के शुरु में क्यूं रखा गया मौलाना मौदूदी तफीमुल कुरान
- सूरह अल फातिहा को कुरान करीम किताब के शुरू में इसको रखने का मतलब ये है कि अगर तुम हक़ीक़त में इस किताब से फ़ायदा उठाना चाहते हो तो पहले ख़ुदावन्दे-आलम (जगत-स्वामी) से ये दुआ करो। इन्सान फ़ितरी तौर पर दुआ उसी चीज़ की किया करता है जिसकी तलब और ख़ाहिश उसके दिल में होती है, और उसी सूरत में करता है, जबकि उसे ये एहसास हो कि उसकी वो चीज़ जिसकी वो चाहत रखता है उस हस्ती के इख़्तियार में है जिससे वो दुआ कर रहा है।
- इसलिये क़ुरआन के शुरू में इस दुआ को सिखाकर मानो इन्सान को ये नसीहत की गई है कि वो इस किताब को सीधे रास्ते की तलाश के लिये पढ़े, हक़ को हासिल करनेवाले की सी ज़ेहनियत लेकर पढ़े और ये जान ले कि इल्म (ज्ञान) का सरचश्मा ख़ुदावन्दे-आलम है, इसलिये उसी से रहनुमाई की दरख़ास्त करके पढ़ना शुरू करे।
क़ुरआन और सूरा फ़ातिहा के बीच हक़ीक़ी ताल्लुक़
इस मज़मून (विषय) को समझ लेने के बाद ये बात ख़ुद वाज़ेह हो जाती है कि क़ुरआन और सूरा फ़ातिहा के बीच हक़ीक़ी ताल्लुक़ किताब और उसके दीबाचे का-सा नहीं, बल्कि दुआ और दुआ के जवाब का-सा है। सूरा फ़ातिहा एक दुआ है बन्दे की तरफ़ से और क़ुरआन उसके सामने रख देता है कि ये है वो हिदायत और रहनुमाई जिसकी दरख़ास्त तूने मुझसे की है।
Surah Fatiha Tafseer in Hindi by Tafseer Ibn kaseer – सुर: फातिहा तफसीर इब्न कसीर बिस्मिल्लाह।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़े मेहरबान, निहायत रहम वाले हैं।
सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने किताबुल्लाह को इसी के साथ शुरू किया। उलेमा हज़रात का इत्तिफाक है कि सूरः नमल की यह एक आयत है, अलबत्ता इसमें इख़्तिलाफ (मतभेद) है कि वह हर सूरत के शुरू में ■ एक मुस्तकिल आयत है या हर सूरत की एक मुस्तकिल आयत है जो उसके शुरू में लिखी गयी है, या हर सूरत की आयत का हिस्सा है, या इस तरह सूरः फातिहा ही की आयत है और दूसरी सूरतों की नहीं, या सिर्फ एक सूरत को दूसरी सूरत से अलग करने के लिये लिखी गयी है, और आयत नहीं? पहले और बाद के उलेमा हज़रात का इन बातों में इख़्तिलाफ (मतभेद) चला आता है और अपनी
• जगह पर इसकी तफसील मौजूद है। सुनन अबू दाऊद में सही सनद के साथ हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि. से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक सूरत को दूसरी सूरत से अलग नहीं फरमा सकते थे जब तक कि आप पर “बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम” नाज़िल नहीं हुई थी। मुस्तद्रक हाकिम में भी यह हदीस है। एक मुर्सल हदीस में हज़रत सईद बिन जुबैर रजि. से भी यह रिवायत नकल की गयी है। सही इब्ने खुज़ेमा में हज़रत सलमा रजि. से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने “बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम” को सूरः फातिहा के शुरू में नमाज़ में पढ़ा और उसे एक आयत शुमार की, लेकिन इसके एक रावी उमर बिन हारून बलखी ज़ईफ (कमज़ोर) हैं और इसकी मुताबअत में एक रिवायत हज़रत अबू हुरैरह रज़ि. से मरवी है, और उसके जैसा ही हज़रत अली, हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि. वगैरह से भी नकल है। हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास, हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर, हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर, हंज़रत अबू हुरैरह, हज़रत अली, हज़रत अत्ता, हज़रत ताऊस, हज़रत सईद इब्ने जुबैर, हज़रत मकहूल, हज़रत • जोहरी का यही मज़हब है कि “बिस्मिल्लाह….” हर सूरत की एक मुस्तकिल आयत है सिवाय सूरः बराअत के। इन सहाबा और ताबिईन रह. के अलावा हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक, इमाम शाफई, इमाम अहमद बिन हंबल रह. के एक कौल में और इस्हाक बिन राहवैह और अबू उबैद, कासिम इब्ने सलाम रह. का भी यही मज़हब है।