सूरह फातिहा तफसीर, तफ़हीमूल कुरान मौलाना मौदुदी और तफसीर इब्न कसीर।
सूरह फातिहा आयत 3 ملك يوم الدين ट्रांसलेशन और तफसीर
مَلِكِ يَوْمِ الدِّينِ
बदले के दिन का मालिक है।
पिछली आयत। سورة الفاتحه अगली आयत
हाशिया-5 यानी उस दिन का मालिक है जबकि तमाम अगली-पिछली नस्लों को जमा करके उनकी ज़िन्दगी के कारनामों का हिसाब लिया जाएगा और हर इन्सान को उसके अम्ल का पूरा सिला या बदला मिल जाएगा। अल्लाह की तारीफ़ में रहमान और रहीम कहने के बाद बदला दिये जाने के दिन का मालिक कहने से ये बात निकलती है कि वो ख़ाली मेहरबान ही नहीं है, बल्कि मुंसिफ़ (न्यायाधीश) भी है, और इन्साफ़ करनेवाला भी ऐसा कि जो बाइख़्तियार है और आख़िरी फ़ैसले के दिन वही पूरे इक़्तिदार का मालिक होगा। अगर वो किसी को सज़ा देना चाहेगा तो कोई भी उसमें रुकावट न बन सकेगा और इसी तरह अगर वो किसी को इनाम देना चाहेगा तो कोई भी उसमें रुकावट न बन सकेगा। इसलिये हम उसके रब होने और उसकी रहमत की वजह से उससे मुहब्बत ही नहीं करते, बल्कि उसके इन्साफ़ की वजह से उससे डरते भी हैं। और ये एहसास भी रखते हैं कि हमारे अंजाम की भलाई और बुराई पूरे तौर पर उसी के इख़्तियार में है।
तफसीर इब्न कसीर जिल्द 1 पारा 1 सुर: फातिहा ।
ملك يوم الدينِ
जो मालिक हैं बदले के दिन के। (3)
बाज़ कारियों ने ‘मलिकि’ पढ़ा है और बाकी सबने ‘मालिकि’। दोनों किराअतें सही और मुतवातिर हैं। और सात किराअतों में से हैं और ‘मालिकि’ के ‘लाम्’ के ज़ेर और उसके सुकून (जज़म) के साथ और ‘मालीकि’ और ‘मालिकी’ भी पढ़ा गया है। पहली दोनों क्रिराअतें मायने की रू से तरजीह वाली हैं और दोनों सही और अच्छी हैं। अल्लामा ज़मख़्शरी ने ‘मुल्क’ को तरजीह दी है इसलिये कि हरमैन शरीफैन वालों की यह किराअत है और कुरआन में भी हैः
لِمَنِ الْمُلْكُ الْيَوْمَ قَوْلُهُ الْحَقُّ وَلَهُ الْمُلْكُ.
इमाम अबू हनीफा रह. से भी नकल किया गया है कि उन्होंने ‘मुल्क’ पढ़ा, इस बिना पर कि ‘फेल’ ‘फाअिल’ और ‘मऊल’ आता है लेकिन यह शाज़ और बेहद गरीब है।
नोटः इमाम अबू हनीफा रह. के मुताल्लिक यह रिवायत बजाय खुद काबिले एतिबार नहीं है, अफसोस कि इब्ने कसीर ने रिवायत के मुताल्लिक अपना फैसला नाफिज़ कर दिया, लेकिन इमाम अबू हनीफा की तरफ इस रिवायत के मन्सूब किये जाने के बारे में कोई कलाम न किया। अन्ज़र शाह कश्मीरी
अबू बक्र बिन अबू दाऊद ने इसमें एक गरीब रिवायत पेश की है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके तीनों खलीफा और हज़रत मुआविया और उनके लड़के ‘मालिकि’ पढ़ते थे। इब्ने शिहाब कहते हैं कि सबसे पहले मरवान ने ‘मलिकि’ पढ़ा, लेकिन हमारा ख्याल है कि मरवान को अपनी इस किराअत के सही होने पर इत्तिला थी जो हदीस के रावी इब्ने शिहाब को न थी। वल्लाहु आलम ।
इब्ने मर्दूया ने कई सनदों से इसे बयान किया है कि हुजूरे पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ‘मालिकि’ पढ़ते थे ‘मालिक’ का लफ़्ज़ ‘मलिक’ से माखूज़ (लिया गया) है जैसा कि कुरआन में हैः
إِنَّا نَحْنُ نَرِثُ الْأَرْضَ.
यानी ज़मीन और उसके ऊपर की तमाम मख्लूक के मालिक हम ही हैं और हमारी तरफ सब लौटाये जायेंगे। और फरमाया ‘कुल अऊजु बि-रब्बिन्नासि मलिकिन्नासि’ यानी कह कि मैं पनाह पकड़ता हूँ लोगों के रब और लोगों के ‘मालिक’ की। और ‘मालिक’ व ‘मलिक’ का लफ़्ज़ ‘मुल्क’ से लिया गया है, जैसे फरमायाः
الخ. لِمَنِ الْمُلْكُ الْيَوْمَ ..
قَوْلُهُ الْحَقُّ وَلَهُ الْمُلْكُ الخ.
यानी आज मुल्क किसका है? सिर्फ अल्लाह वाहिद गुलबे वाले का। और फरमायाः
उसी का फरमान हक है, और उसी का सब “मुल्क” है। और फरमाया आज के दिन “मुल्क” रहमान ही का हक है और आज का दिन काफिरों पर बहुत सख्त है। इस फ्रमान में कियामत के दिन के साथ मिल्कियत को खास करने से यह न समझना चाहिये कि कियामत के अलावा और चीज़ों को अपना मम्लूक कार देने से इनकार किया जा रहा है,
इसलिये कि पहले अपना वस्फ ‘रब्बुल-आलमीन’ होना बयान फरमा चुका है जो दुनिया व आखिरत को शामिल है। कियामत के दिन के साथ इसकी तख़्सीस (विशेषता और ख़ास करने) की वजह यह है कि उस दिन तो कोई • मिल्कियत का दावेदार भी न होगा, बल्कि बगैर उस हकीकी मालिक की इजाज़त के कोई ज़बान तक न हिला सकेगा। जैसे फरमाया कि जिस दिन रूह और फरिश्ते सफ बाँधे खड़े होंगे और कोई कलाम न कर सकेगा यहाँ तक कि ‘रहमान’ उसे इजाज़त दे और वह ठीक बात कहे।
एक और जगह इरशाद है कि सब आवाजें ‘रहमान’ के सामने पस्त होंगी और सिवाय गुनगुनाहट के कुछ सुनाई न देगा। और फरमाया- जब कियामत आयेगी उस दिन अल्लाह तआला की इजाज़त के बगैर ■ कोई शख़्स बोल न सकेगा। बाज़ उनमें से बदबख्त होंगे और बाज़ नेकबख़्त। हज़रत इब्ने अब्बास रजि. फरमाते हैं कि उस दिन उसकी बादशाहत में उसके सिवा कोई न होगा। जैसा कि दुनिया में ज़ाहिरी तौर पर
एक तरह से थे। ‘यौमिद्दीन’ से मुराद मख़्लूक के हिसाब यानी कियामत का दिन है। जिस दिन तमाम भले-बुरे आमाल का बदला दिया जायेगा। हाँ अगर रब किसी बुराई से दरगुज़र करे यह उसका इख़्तियारी मामला है। सहाबा ■ रज़ियल्लाहु अन्हुम, ताबिईन और बुजुर्गों से भी यह रिवायत किया गया है। बाज़ से यह भी मन्कूल है कि • मुराद इससे यह है कि खुदा तआला कियामत के कायम करने पर कादिर है। इब्ने जरीर ने इस कौल को • ज़ईफ (कमज़ोर) कार दिया है, लेकिन बज़ाहिर इन दोनों कौलों में कोई मुखालफत (एक दूसरे के खिलाफ) • नहीं। हर एक कौल का कायल दूसरे के कौल की तस्दीक करता है। हाँ पहला कौल मतलब पर ज़्यादा दलालत करता है, जैसा कि फरमान हैःالْمُلْكُ يَوْمَئِذٍ هِ الْحَقُّ لِلرَّحْمَنِ(और) उस । दिन वास्तविक हुकूमत (हज़रत) रहमान ही की होगी और वह (दिन) काफिरों पर बड़ा सख्त दिन होगा। (सूरः फुरकान आयत 26) और दूसरा कौल इस आयत के जैसा है जो फरमायाः
وَيَوْمَ يَقُولُ كُنْ فَيَكُونُ.
यानी जिस दिन कहेगा कि हो जा बस उसी वक़्त हो जायेगी। वल्लाहु आलम। हकीकी मालिक अल्लाह तआला ही है जैसे फरमायाः
هُوَ اللَّهُ الَّذِي لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ الْمَلِكُ …… الخ.
वह ऐसा माबूद है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं, वह बादशाह है………. (सूरः हश्र आयत 23) सहीहैन (बुखारी व मुस्लिम) में हज़रत अबू हुरैरह रज़ि. से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- बदतरीन नाम अल्लाह तआला के नज़दीक उस शख्स का है जो शहनशाह कहलाये, असली मालिक अल्लाह के सिवा कोई नहीं। एक और हदीस में है कि अल्लाह तआला ज़मीन को कब्ज़े में • ले लेगा और आसमान उसके दाहिने हाथ में लिपटे हुए होंगे, फिर फरमायेगा मैं बादशाह हूँ। कहाँ गये ■ ज़मीन के बादशाह? कहाँ हैं तकब्बुर करने वाले? कुरआन पाक में है कि आज बादशाहत किसकी है? सिर्फ • अल्लाह अकेले गुलबे वाले की, और किसी को मालिक कह देना यह सिर्फ यूँ ही अस्थाई तौर पर है जैसा • कि कुरआन में तालूत को ‘मलिक’ (बादशाह) कहा गया और हज़रत मूसा व खज़िर अलैहिमस्सलाम के ■ किस्से में है ‘व का-न वराअहुम् मलिकुंय्-यअखुज…… (कि उनके पीछे एक बादशाह था…..) का लफ़्ज़ आया है। और बुखारी व मुस्लिम में ‘मुलूक’ (बादशाहों) का लफ़्ज़ आया है और कुरआन पाक की एक आयत में है:
यानी तुममें अम्बिया किये और तुम्हें बादशाह बनाया। ‘दीन’ के मायने बदले, जज़ा और हिसाब के हैं जैसा कि कुरआन पाक में है कि उस दिन अल्लाह ■ तआला उन्हें पूरा-पूरा बदला देगा और वे जान लेंगे। एक और जगह है- क्या हम बदला दिये जायेंगे? हदीस
إِذْ جَعَلَ فِيكُمْ أَنْبِيَاءَ وَجَعَلَكُمْ مُلُوكًا.
■ में है कि दाना (अक्लमन्द) वह है जो अपने नफ़्स से खुद बदला ले और मौत के बाद काम आने वाले आमाल करे। यानी अपने नफ़्स से खुद हिसाब ले। जैसा कि हज़रत उमर फारूक रज़ि. का कौल है कि तुम
■ खुद अपनी जानों से हिसाब लो, इससे पहले कि तुम्हारा हिसाब लिया जाये और अपने आमाल का खुद ■ वज़न कर लो इससे पहले कि वे तराजू में रखे जायें। और उस बड़ी पेशी के लिये तैयार रहो जब तुम उस खुदा के सामने पेश किये जाओगे जिस पर तुम्हारा कोई अमल पोशीदा नहीं जैसा कि खुद अल्लाह तआला
■ ने फरमा दिया कि जिस दिन तुम पेश किये जाओगे तो कोई बात खुदा पर छुपने की नहीं।