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اهدنا الصراط المستقيم हिन्दी सूरह फातिहा आयत 6

اهدنا الصراط المستقيم

हमें सीधा रास्ता दिखा ।

पिछली।         सूरह फातिहा।               अगली

सूरह फातिहा तफसीर तफहीम उल कुरआन हिंदी  Surat No. 1 Ayat NO. 6 और तफसीर इब्न कसीर।

सूरह फातिहा तफसीर तफहीम उल कुरआन हिंदी  सूरह फातिहा आयत 6 اهدنا الصراط المستقيم

सूरह फातिहा हाशिया-8 यानी ज़िन्दगी के हर शोबे और विभाग में सोच, अम्ल और बर्ताव का वो तरीक़ा हमें बता जो बिलकुल सही हो, जिसमें ग़लत देखने और ग़लत करने और बुरे अंजाम का ख़तरा न हो, जिसपर चलकर हम सच्ची कामयाबी और ख़ुशनसीबी (सौभाग्य) हासिल कर सकें। – ये है वो दरख़ास्त जो क़ुरआन का मुताला शुरू करते हुए बंदा अपने ख़ुदा के सामने पेश करता है। उसकी गुज़ारिश ये है कि आप हमारी रहनुमाई करें और हमें बताएँ कि क़यासी फ़लसफ़ों (काल्पनिक दर्शनों) की इस भूल-भुलैयों में बात की हक़ीक़त क्या है। अख़लाक़ का सही निज़ाम कौन-सा है, ज़िन्दगी की इन बेशुमार पगडंडियों के बीच फ़िक्र व अम्ल (चिंतन और कर्म) का सीधा और साफ़ रास्ता कौन-सा है। 

तफसीर इब्ने कसीर जिल्द (1)पारा (1) सूरः फातिहा ।

اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ

बतला दीजिए हमको रास्ता सीधा।

सूरह फातिहा आयत 6 اهدنا الصراط المستقيم

सूरह फातिहा आयत 6 हिन्दी तफसीर इब्न कसीर

चूँकि पहले अल्लाह की तारीफ व सना बयान की तो अब मुनासिब था कि अपनी हाजत तलब करे।जैसा कि पहले हदीस में गुज़र चुका है कि इसका आधा हिस्सा मेरे लिये है और आधा मेरे बन्दे के लिये वह ■ है जो वह तलब करे। ख्याल कीजिए कि इसमें किस कद्र लताफ्त और उम्दगी है कि पहले परवर्दिगारे आलम की तारीफ व प्रशंसा बयान की, फिर अपनी और अपने भाईयों की हाजत तलब की। यह वह उम्दा अन्दाज़ और तरीका है जो मकसूद को हासिल करने और मुराद को पा लेने के लिये अचूक है। इस कामिल तरीके को पसन्द फरमाकर खुदा तआला ने इसकी हिदायत की। कभी सवाल इस तरह होता है कि साईल (माँगने वाला) अपनी हालत और हाजत को ज़ाहिर कर देता है। जैसे मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा थाः 

ऐ परवर्दिगार! जो भलाईयाँ तूने मेरी तरफ नाज़िल फरमाई हैं मैं उनका मोहताज हूँ। हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम ने भी अपनी दुआ में कहा थाः 

رَبِّ إِنِّي لَمَا أَنْزَلْتَ إِلَيَّ . خَيْرٍ فَقِيرٌ. من. 

لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنتُ مِنَ الظَّالِمِينَ. 

खुदाया तेरे सिवा कोई माबूद नहीं, तू पाक है, मैं ज़ालिमों में से हूँ। कभी सवाल इस तरह भी होता है कि साईल सिर्फ तारीफ और बुजुर्गी बयान करके चुप हो जाता है। जैसे शायरों का कौल है कि मुझे अपनी हाजत के बयान करने की कोई ज़रूरत नहीं, तेरी मेहरबानियाँ भरी बख़्शिश मुझे काफी है। मैं जानता हूँ कि देना और इनायत करना तेरी पाक आदतों में दाखिल है, सिर्फ तेरी पाकीज़गी बयान कर देना, तेरी तारीफ व सना करना ही मुझे अपनी हाजत पूरी करने के लिये काफी है। • हिदायत के मायने यहाँ पर इरशाद और तौफीक के हैं, कभी तो हिदायत अपनी ज़ात से मुतअद्दी होती • (यानी उसका असर दूसरों तक भी पहुँचता) है। जैसे यहाँ है, तो मायने ये होंगे कि हमें अता फरमा। इसी ■ मायनों में एक और जगह हैः 

यानी हमने उसे दोनों रास्ते दिखा दिये, भलाई और बुराई दोनों के। और कभी हिदायत ‘इला’ के साथ मुतअद्दी होती है जैसे फरमायाः

وَهَدَيْنَهُ النَّجْدَيْنِ. 

اجْتَبَهُ وَهَدَاهُ إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ. अल्लाह तआला ने उनको चुन लिया था और सीधे रास्ते पर डाल दिया था। (सूरः नहल आयत 121) एक और जगह फरमायाः 

फिर उन सब को दोज़ख का रास्ता बतलाओ। (सूरः साफ्फात आयत 23) فَاهْدُوهُمْ إِلَى صِرَاطِ الْجَحِيمِ. यहाँ हिदायत, रहनुमाई और दिखाने व बताने के मायने में है। इसी तरह फरमान हैः 

وَإِنَّكَ لَتَهْدِي …… الخ. 

यानी तू अलबत्ता सीधी राह दिखाता है। और कभी हिदायत ‘लाम’ के साथ मुतअद्दी होती है जैसे जन्नितयों का कौल कुरआने करीम में हैः 

الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي هَدَانَا لِهَذَا .यानी खुदा का शुक्र है कि उसने हमें इसकी राह दिखाई यानी तौफीक दी और हिदायत वाला बनाया। “सिराते मुस्तकीम” के मायने अनेक हैं। इमाम अबू जाफर इब्ने जरीर फरमाते हैं कि मुराद इससे वाज़ेह और साफ रास्ता है, जो कहीं से टेढ़ा न हो। अरब की लुगत में और शायरों के शे’रों में यह मायने साफ तौर पर पाये जाते हैं और इस पर बेशुमार शवाहिद (नज़ीरे) मौजूद हैं। ‘सिरात’ का इस्तेमाल कौल और फेल दोनों में होता है और फिर ‘सिरात’ की सिफ्त कभी इस्तिकामत (मज़बूती और जमाव) होती है और कभी कजी (टेढ़)। पहले और बाद के मुफस्सिरीन उलेमा से इसकी बहुत सी तफ्सीर मन्कूल हैं और ● उन सबका खुलासा एक है और वह खुदा और रसूल की पैरवी और ताबेदारी है। एक मरफूअ हदीस में है कि ‘सिराते मुस्तकीम’ किताबुल्लाह है। (इब्ने अबी हातिम) इसी तरह इब्ने जरीर ने भी रिवायत की है। फज़ाईले कुरआन के बारे में पहले हदीस गुज़र चुकी है कि खुदा तआला की मज़बूत रस्सी, हिक्मतों वाला ■ ज़िक्र और सीधी राह यानी ‘सिराते मुस्तकीम’ यही खुदा की किताब कुरआने करीम है। (मुस्नद अहमद, तिर्मिज़ी) हज़रत अली रज़ि. का कौल भी यही है और मरफुञ्ज हदीस का भी मौकूफ होना ही ज़्यादा मुशाबा है। वल्लाहु आलम । 

हज़रत अब्दुल्लाह से भी यही रिवायत है। इब्ने अब्बास रज़ि. का कौल है कि जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने कहा- ऐ मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)! ‘इहदिनस्सिरातलु मुस्तकीम’ कहिये। यानी हमें हिदायत ■ वाले रास्ते का इल्हाम कर (दिल में डाल) और उस दीने खुदा की समझ दे जिसमें कोई कजी (टेढ़ और ■ खराबी) नहीं। आप से यह कौल भी मरवी है कि इससे मुराद इस्लाम है। हज़रत इब्ने अब्बास, इब्ने मसऊद ■ मुस्तकीम’ से मुराद इस्लाम है जो हर उस चीज़ से जो आसमान और ज़मीन के दरमियान है ज़्यादा वुस्अत वाला है। इब्ने हनफिया फरमाते हैं कि इससे मुराद अल्लाह तआला का वह दीन है जिसके सिवा और दीन मकबूल नहीं। अब्दुर्रहमान बिन जैद बिन असलम का कौल है कि ‘सिराते मुस्तकीम’ इस्लाम है। मुस्नद अहमद की एक हदीस में मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- अल्लाह तआला ने एक मिसाल बयान की ‘सिराते मुस्तकीम’ की कि उसके दोनों तरफ दो दीवारें हैं, उनमें कई एक खुले हुए दरवाज़े हैं और दरवाज़ों पर पर्दे लटक रहे हैं। ‘सिराते मुस्तकीम’ के दरवाज़े पर एक पुकारने वाला मुर्कार है। ■ जो कहता है कि ऐ लोगो ! तुम सबके सब इसी सीधी राह पर चले जाओ, टेढ़ी तिरछी इधर-उधर की राहों पर न लगो। एक पुकारने वाला उस रास्ते के ऊपर है, जब कोई शख्स उन दरवाज़ों में से किसी को खोलना चाहता है तो वह कहता है ख़बरदार! इसे न खोलना। अगर खोला तो इस राह पर लग जायेगा और ‘सिराते मुस्तकीम’ से हट जायेगा। पस ‘सिराते मुस्तकीम’ तो इस्लाम है और दीवारें अल्लाह की हदें हैं और खुले • हुए दरवाज़े अल्लाह तआला की हराम की हुई चीजें हैं और दरवाज़े पर पुकारने वाला कुरआने करीम है और रास्ते के ऊपर से पुकारने वाला खौफे इलाही (अल्लाह का डर) है जो हर ईमान वाले के दिल में अल्लाह तआला की तरफ से बतौर वाअिज़ (नसीहत करने वाले) के. होता है। यह हदीस इब्ने अबी हातिम, इब्ने < राज़ी 

और बहुत से सहाबा से भी यही तफसीर मन्कूल है। हज़रत जाबिर रज़ि. फरमाते हैं कि ‘सिराते जरीर, तिर्मिज़ी और नसाई में भी है और इसकी सनद हसन सही है। वल्लाहु आलम। मुजाहिद रह. फरमाते हैं कि इससे मुराद हक है। उनका यह कौल सबसे ज़्यादा जामे है और इन सब अक्‌वाल में आपसी कोई टकराव और विरोधाभास नहीं। अबुल-आलिया फरमाते हैं कि इससे मुराद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके बाद के आपके दोनों खलीफा हैं। अबुल-आलिया इस कौल की • तस्दीक और पसन्द करते हैं। दर असल ये सब अक्वाल सही हैं और एक दूसरे से मुवाफिक हैं। नबीकरीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके दोनों खुलफा हज़रत अबू बक्र सिद्दीक और उमर फारूक रजि. का ताबेदार (पैरवी करने वाला) हक का ताबेदार है, और हक का ताबेदार इस्लाम का ताबेदार और कुरआन का फ्रमाँबरदार है, और कुरआन खुदा की किताब उसकी तरफ की मज़बूत रस्सी और उसकी सीधी राह है। 

फिर ‘सिराते मुस्तकीम’ की तफ्सीर में ये तमाम अक्‌वाल सही हैं और एक दूसरे की तस्दीक करता ■ है। हज़रत अब्दुल्लाह फरमाते हैं कि ‘सिराते मुस्तकीम’ वह है जिस पर हमें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने छोड़ा। इमाम अबू जाफर बिन जरीर रह. का फैसला है कि मेरे नज़दीक इस आयत की तफ्सीर में सबसे बेहतर यह है कि हम तौफीक दिये जायें उस चीज़ की जो खुदा की मर्जी की चीज़ हो, और जिस पर चलने की वजह से खुदा अपने बन्दों से राज़ी हुआ हो, और उन पर इनाम किया हो। ‘सिराते मुस्तकीम’ यही है। इसलिये कि जो शख्स उस चीज़ की तौफीक दिया गया जिसकी तौफीक अल्लाह के नेक बन्दों को थी, जिन पर अल्लाह तआला का इनाम हुआ था और जो नबी, सिद्दीक, शहीद और सालेह (नेक) लोग थे, उन्होंने इस्लाम की और रसूलों की तस्दीक की और किताबुल्लाह को मज़बूत थाम लेने की और अल्लाह तआला के अहकाम को बजा लाने की और उसके मना किये हुए कामों से रुक जाने की और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके चारों खुलफा और तमाम नेक बन्दों की राह की तौफीक दिया गया। और यही ‘सिराते मुस्तकीम’ है। 

अगर यह कहा जाये कि मोमिन को तो खुदा की तरफ से हिदायत हासिल हो चुकी है फिर नमाज़ में और नमाज़ के अलावा में हिदायत माँगने की क्या ज़रूरत? तो इसका जवाब यह है कि इससे हिदायत पर साबित-कदमी, रसूख (जमे रहने और मज़बूती) और हमेशगी की तलब है। इसलिये कि बन्दा हर घड़ी और हर हालत में खुदा तआला का मोहताज है, वह खुद अपनी जान के नफे-नुक्सान का मालिक नहीं, बल्कि दिन रात अपने खुदा की तरफ मोहताज है। इसी लिये खुदा ने उसे सिखाया कि हर वक़्त वह अल्लाह • तआला से हिदायत तलब करता रहे और साबित-कदमी (सही रास्ते पर जमाव) और तौफीक चाहता रहे। भला और नेकबख्त इनसान वह है जिसे अल्लाह तआला अपने दर का भिखारी बना ले, अल्लाह तआला • अपने पुकारने वाले की पुकार के कबूल करने का कफील है, खासकर बेकार, मोहताज और उसकी तरफ ■ अपनी हाजत दिन रात पेश करने वाले की हर पुकार को कबूल करने का वह ज़ामिन (गारंटी लेने वाला) है। एक दूसरी जगह कुरआने करीम में हैः 

الخ. يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا آمِنُوا بِاللَّهِ.. ऐ ईमान वालो! अल्लाह पर, उसके रसूलों पर, उसकी उस किताब पर जो उसने अपने रसूल की तरफ नाज़िल फरमाई और जो किताबें इससे पहले नाज़िल हुईं सब पर ईमान लाओ।

इस आयत में ईमान वालों को ईमान लाने का हुक्म देना ऐसा ही है जैसा यहाँ हिदायत वालों को हिदायत की तलब का हुक्म देना। मुराद दोनों जगह इस पर जमे रहना और हमेशगी है। और ऐसे आमाल पर हमेशगी करनी (यानी मुस्तकिल उन्हें करना) जो इस मक्सद के हासिल करने में मदद पहुँचायें। वल्लाहु आलम। और देखिये। अल्लाह रब्बुल-इज़्ज़त ने अपने ईमान वाले बन्दों को हुक्म दिया है कि वे कहेंः

رَبَّنَا لَا تُزِغْ قُلُوبَنَ بَعْدَاذُ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِنْ لَدُنْكَ رَحْمَةً إِنَّكَ أَنْتَ الْوَهَّابُ.

यानी ऐ हमारे रब! हमारे दिलों को हिदायत के बाद टेढ़ा न कर, और हमें अपने पास की रहमत अता फरमा, तू बहुत बड़ा देने वाला अता फरमाने वाला है।

यह भी आया है कि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ि. मग़रिब की तीसरी रक्अत में सूरः फातिहा के बाद इस आयत को धीमी आवाज़ से पढ़ा करते थे। पस ‘इहदिनस्-सिरातलु मुस्तकीम’ के मायने यह हुए कि खुदाया हमें ‘सिराते मुस्तकीम’ पर साबित-कदम (जमने वाला) रख और उससे हमें न हटा।

 

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