सूरः ब-करह और सूरः आले इमरान की फ्ज़ीलत
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सूरः ब-करह और सूरः आले इमरान की फ्ज़ीलत
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं कि सूरः ब-करह सीखो, इसका सीखना बरकत है। और इसका छोड़ना हसरत (अफसोस और नाकामी) है। जादूगर इसकी ताकत नहीं रखते। फिर कुछ देर चुप ■ रहने के बाद फरमाया- सूरः ब-करह और सूरः आले इमरान सीखो, ये दोनों नूरानी सूरतें हैं, अपने पढ़ने वाले पर सायबान या बादल या परिन्दों के झुण्ड की तरह कियामत के रोज़ साया करेंगी। कुरआन पढ़ने वाला • जब कब्र से उठेगा तो देखेगा कि एक नौजवान नूरानी चेहरे वाला शख्स उसके पास खड़ा हुआ कहता है कि ■ क्या आप मुझे पहचानते हैं? यह कहेगा नहीं, वह जवाब देगा कि मैं कुरआन हूँ। जिसने दिनों को तुझे भूखा प्यासा रखा था और रातों को बिस्तर से दूर बेदार रखा था। हर ताजिर अपनी तिजारत के पीछे है, लेकिन ■ आज सब तिजारतें तेरे पीछे हैं। अब इसे मुल्क दाहिने हाथ में दिया जायेगा और हमेशगी बायें हाथ में, ■ उसके सर पर वकार व इज़्ज़त का ताज रखा जायेगा, उसके माँ-बाप को दो ऐसे उम्दा कीमती जोड़े पहनाये जायेंगे कि सारी दुनिया भी उनकी कीमत के सामने कोई हैसियत न रखेगी। वे (माँ-बाप) हैरान होकर कहेंगे कि आखिर इस रहम व करम और इस इनाम व सम्मान की क्या वजह है? तो उन्हें जवाब दिया जायेगा कि तुम्हारे बच्चे के कुरआन पढ़ने की वजह से तुम पर यह नेमत की गयी। फिर उससे कहा जायेगा पढ़ता जा और जन्नत के दरजात पर चढ़ता जा। चुनाँचे वह पढ़ता जायेगा और आला से आला तबके पर चढ़ता जायेगा, चाहे ठहर-ठहर कर पढ़े चाहे रवानी (रफ़्तार) से।
इब्ने माजा में भी इस हदीस का कुछ हिस्सा मरवी है। इसकी सनद हसन है और इमाम मुस्लिम की • शर्त पर है। इसके रावी बशीर बिन मुहाजिर से इमाम मुस्लिम भी रिवायत लेते हैं और इमाम यहया बिन ■ मईन इसे सिका (मोतबर) कहते हैं। इमाम नसाई रह. का कौल है कि इसमें कोई हर्ज नहीं। हाँ इमाम अहमद इसे मुन्करुल-हदीस बतलाते हैं और फरमाते हैं कि मैंने तलाश की तो देखा कि वह अजीब-अजीब हदीसें लाता है। इमाम बुख़ारी रह. फरमाते हैं कि इसकी बाज़ हदीसों का ख़िलाफ (विरोध) किया जाता है। ■ अबू हातिम राज़ी का फैसला है कि इसकी हदीसें लिखी जाती हैं लेकिन दलील नहीं बनाई जा सकतीं। इब्ने अदी का कौल है कि इनकी ऐसी रिवायात भी हैं जिनकी मुताबिअत नहीं की जाती। इमाम दारे कुतनी रह. ■ फरमाते हैं यह कवी (मज़बूत) नहीं हैं। मैं कहता हूँ कि इसकी इस रिवायत के कुछ मज़ामीन दूसरी सनदों में ■भी आये हैं।
मुस्नद अहमद में है कि कुरआन पढ़ा करो यह अपने पढ़ने वालों की कियामत के दिन शफाअत करेगा, दो नूरानी सूरतों सूरः ब-करह और सूरः आले इमरान को पढ़ते रहा करो, ये दोनों कियामत के दिन इस तरह आयेंगी जैसे कि दो सायबान (साया करने वाले) हैं, या दो बादल हैं या पंख खोले परिन्दों के दो समूह और झुंड हैं। अपने पढ़ने वालों की तरफ से खुदा तआला से सिफारिश करेंगी। फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व ■ सल्लम ने फरमाया- सूरः ब-करह पढ़ा करो, इसका पढ़ना बरकत है और छोड़ना हसरत (अफसोस का सबब)
है, इसकी ताकत बातिल वालों को नहीं। सही मुस्लिम शरीफ में भी हदीस है, मुस्नद अहमद की एक और हदीस में है कि कुरआन पढ़ने वालों को कियामत के दिन बुलवाया जायेगा, आगे-आगे सूरः ब-करह और सूरः आले इमरान होंगी, बादल की तरह या साये और सायबान की तरह या पंख खोले परिन्दों के समूह ■ और झुंड की तरह। ये दोनों परवर्दिगार से डटकर सिफारिश करेंगी। मुस्लिम और तिर्मिज़ी में भी यह वास • है। इमाम तिर्मिज़ी इसे हसन गरीब कहते हैं।
एक शख़्स ने अपनी नमाज़ में सूरः ब-करह और सूरः आले इमरान पढ़ी, उसके फारिग होने के बाद हज़रत कअब रज़ि. ने फरमाया- खुदा की कसम जिसके हाथ में मेरी जान है, इनमें खुदा का वह नाम है कि उस नाम के साथ जब कभी उसे पुकारा जाये वह कबूल फरमाता है। अब उस शख्स ने हज़रत कअब रजि. • से अर्ज किया कि मुझे बतलाईये वह कौनसा है? हज़रत कज़ब रज़ि. ने इससे इनकार किया और फरमाया अगर मैं बता दूँ तो ख़ौफ है कि कहीं तू उस नाम की बरकत से ऐसी दुआ न माँग ले जो मेरी और तेरी हलाकत का सबब बन जाये। हज़रत अबू उमामा रज़ि. फरमाते हैं कि तुम्हारे भाई को ख़्वाब में दिखलाया ■ गया कि गोया लोग एक बहुत बुलन्द पहाड़ पर चढ़ रहे हैं, पहाड़ की चोटी पर दो सरसब्ज़ (हरे-भरे) दरख्त • हैं और उनमें से आवाजें आ रही हैं कि क्या तुममें कोई सूरः ब-करह का पढ़ने वाला है? क्या तुम में कोई सूरः आले इमरान का पढ़ने वाला है? जब कोई कहता है कि हाँ तो वे दोनों दरख़्त (पेड़) अपने फलों समेत ■ उसकी तरफ झुक आते और यह उसकी शाख़ों पर बैठ जाता और वे उसे ऊपर उठा लेते।
हज़रत उम्मे दर्दा रज़ि. फरमाती हैं कि एक कुरआन पढ़े हुए शख्स ने अपने पड़ोसी को मार डाला, फिर •किसास (खून के बदले खून) में वह भी मारा गया। फिर कुरआने करीम एक-एक सूरत हो-होकर अलग ■ होना शुरू हुआ यहाँ तक कि उसके पास सूरः आले इमरान और सूरः ब-करह रह गयीं। एक जुमे के बाद • सूरः आले इमरान भी चली गयी, फिर एक जुमा और गुज़रा तो आवाज़ आयी की मेरी बातें नहीं बदला करतीं और मैं अपने बन्दों पर जुल्म नहीं करता। चुनाँचे यह मुबारक सूरत यानी सूरः ब-क्रह भी उससे ■ अलग हो गयी। मतलब यह है कि ये दोनों सूरतें उसकी तरफ से बलाओं और अज़ाबों की आड़ बनी रहीं • और उसकी कब्र में उसकी दिलजोई करती रहीं और सबसे आखिर में उसके गुनाहों की ज़्यादती की वजह से इनकी सिफारिश भी न चली। यज़ीद बिन अस्वद जुरशी कहते हैं कि इन दोनों सूरतों को दिन में पढ़ने वाला ■ दिन भर निफाक से बरी रहता है और रात को पढ़ने वाला सारी रात निफाक से बरी रहता है। खुद हज़रत यज़ीद रज़ि. अपने मामूल के वज़ीफे कुरआन के अलावा इन दोनों सूरतों को हर सुबह व शाम पढ़ा करते ■ थे। हज़रत उमर फारूक रजि. फरमाते हैं कि जो शख्स इन दोनों सूरतों को रात को पढ़ता रहेगा अल्लाह • तआला के नज़दीक वह फ्रमाँबरदारों में शुमार होगा। इसकी सनद मुन्क्ता है। सहीहैन में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इन दोनों सूरतों को एक रक्अत में पढ़ा।